Wednesday 15 November 2017

शाम थी

शाम थी हल्की रौशनी भी ,
सोया भी था शहर आधा
कुछ कर रहें थे गुफ़्तगू
शामिल था मैं भी भीड़ में
तन्हाई का गीत गाता हुआ
मुड़ कर कौन देखे पीछे
हर किसी का चेहरा था
मायूस पड़ा
शब्दों से बयां करने को मजबूर
थे सब
सबके जहन में  बसा था रब
उम्मीद का दामन पकड़े हर कोई ,
कर रहा था गुहार ख़ुदा से
ऐ ख़ुदा बस इतना देना ,
हर किसी को सम्मान दे सकूँ
जो भी आये घर मेरे
ख़ाली हाथ ना उसे कभी
भेजूँ !


नवीन आशा


Monday 6 November 2017

चलता जा राही


कवियत्री मैथिली द्वारा रचित कविता "चलता जा राही" प्रस्तुत है !







राहें अनजानी सही, मंजिल तो बनाना  है
अपनी मेहनत से हमे यूँ ही चलते जाना है।
सुख और दुःख तो साथी है सफर के
सही और गलत में चैन  संग
मुस्कुराना  है।

हर चौराहा चिढाता तुझे
हर राही तकता तुझको
हँसता हैं अंधेरा अक्सर
सन्नाटे का तो काम ही डराना है।

भरोसा कर अंजानों पर
पर अक्ल का दामन ना छोड़ तू
अंतर्मन की बातें अनसुनी ना कर
शायद किस्मत को उसी के बल जगाना
 है।

भरोसा कर खुद पर
थाम ले मेहनत का दामन
मंजिल दुर सही पर
इन राहों पर तुझे चलते जाना
 हैं।

चलता जा राही  , हर सीख गांठ बांध ले जिंदगी का
 तू
तेरा काम ही चलते जाना है।



मैथिली
मधुबनी




Saturday 28 October 2017

परिभाषा

मेरी पहचान हो तुम , मेरे चेहरे की मुस्कान को तुम
जख्म जो देतें हैं अपनें ,उस जख्म का मरहम हो तुम
मेरे टूटें ख्वाबों को , बुननें की ताकत हो तुम
मेरे जीवन की राह हो तुम , मेरे महफ़िल की रौनक हो तुम
बिगरें थे जो रिश्तें , मेरी नादानियों के कारण
उस बिगरें रिश्तों को , सुधारनें का जरिया हो तुम
मेरी पहचान हो तुम ,मेरे चेहरें की मुस्कान हो
रूठने के सिवा , ना आता था कुछ भी
उसें हँसना –हँसाने का , औषधि बना गयी
मेरी पहचान हो तुम , मेरे चेहरें की मुस्कान हो तुम
छुप-छुपकर प्यार जो करता था तुझसें “आशा”
उसें प्यार की परिभाषा सिखा गयी
मेरी पहचान हो तुम , मेरे चेहरें की मुस्कान हो तुम

नवीन आशा
Email id :navink310@gmail.com



Friday 20 October 2017

" लौ ने जिद की "

 कवियत्री मैथिली मूलतः मधुबनी जिला की निवासी है ! वर्तमान में  राँची से वकालत पढ़ रही है ! आज उनकी कविता ' लौ ने जिद की ' आपके समक्ष प्रस्तुत है ! मैथिली का मूल नाम शिल्पा रानी है !


" लौ ने जिद की "



अँधेरे में एक लौ जली है ,
ख़ुशी के आँगन में जो बादल
घिरी दुख के  ,
हटाने की लौ ने जिद की है !
बरसात हो या छाये हो
काले बादल ,
लौ ने उजाला  करने की
जिद की है !
असफलता तो  झुकाती
बुजदिलों को ,
लौ ने उन्हें भी मंजिल पर
पहुँचाने  की जिद की
है !
मंजिल कितना भी दुखदायी हो ,
लौ को तो बस उसके दर पर
दस्तख दे जानी है !
चाहे बुझाए तूफानी हवा इसे ,
इस लौ में तो बस जलने की
रवानी है !
देख़ हिम्मत लौ की ,
ज़माने को भी हिम्मत मिली
निराशा के पथ पर ,
न जानें आशा की एक
लौ जली !

Copyright -मैथिली ( Shilpa Rani )


Tuesday 17 January 2017

"दिल जोड़-जोड़ धड़क रहा "
" हर रोज़ एक-ही बात ! चलती हूँ ! "
" ठहर न......... अभी बताता हूँ..... आज गाना सुन रहा था ' जो न करना वो कर गयी '.......... ! "
" सो क्या..... विशेष क्या है..... गाना ही सुना न........"
" ख़ास नहीं लग रहा... सही है......... ये ही जानना  चाहता था , मेरे लिए ये गाना कौन-कौन गाता है ! जान गया............ "
" पहेली में बात करोगें , तो इस सर्दी में दिमाग कैसे चलाऊंगी ! वैसे- भी सर्दी पराकाष्ठा पर है ! सोचने का मौका भी नहीं देते...... कहते हो ख़ास क्या है ???....... सताने वाली आदत गयी नहीं तुम्हारी............"
" टोन  चेंज कर डाला........ वैसे एक बात सही पूछी हो..... सतानें से क्या मिलता है...... बता ही देता हूँ ' मुस्कराहट ' मूल्य जिसका सिर्फ-सिर्फ मेरे लिए बनी है......"
" उफ्फ्फ........ क्या बचा अब......... बस इतना कहना  चाहती हूँ......... तन्हाई में रहूँ या भीड़ में......बस एक-ही तस्वीर उभरती है मन के भीतर........ वो बस तुम......बस तुम......... बेफिक्र हो कर निहारती तुमको.....बस तुमको........."

#दर्देदिल

नवीन कुमार "आशा "
दरभंगा

तुलनात्मक अध्ययन

 मेरे शब्द आजकल कम हो गए , लगता है जैसे राह में हम अकेले  हो गए  तुलनात्मक अध्ययन की राह में  रख दिया है हमको  कहो मेरी मुस्कान पर भी अब हर ...