Monday 17 September 2018

वक़्त और हम

आज प्रस्तुत है कवियत्री मैथिली द्वारा रचित ' वक़्त और हम ' ! मैथिली वर्तमान में राँची से वकालत पढ़ रही है !




लम्हा तो गुज़र गया
दास्तां छोड़ गया पीछे
अपने
मुमकिन नहीं भुला दे
दास्तां को
न इजाज़त वापस लम्हें
को जी लें
इल्तज़ा ख़ुद से है बस
इतनी
सफर में आगे बढ़ जाये
खट्टी - मिट्ठी यादों संग
जुड़ा सफर का किस्सा
आँखों को नीची जो की
मैंने
ज़माना खिलखिला हँस
पड़ा
वक़्त ने कहा
तू क्यों है अब तक यूँ
खड़ा
भुला दे जो नसीब में है
नहीं
कोई तोहफ़ा होगा ज़िंदगी का
आगे कहीं
क्यों आँसू बहाए बीते किस्सों
पर
चलो आँखों में सजाते है कुछ
हसीं सपने
चलो बढ़ते है राहों में आगे
गुज़रा वक़्त पीछे छोड़ के
अपने !






मैथिली


Monday 3 September 2018

पत्र : अंतिम यात्रा से पहले (भाग 2 )

ख़ामोशी छा गई है मन के भीतर , वो ख़ामोशी जिसमें तुम्हारी यादों की महक है ! तुम दूर 500 किलोमीटर हो , कहाँ पता नहीं..पर पल-भर में ही तुम्हें अपने एहसास में पाता हूँ ! तुम मेरे लिए ख़ुदा की फ़रिश्ता हो... वो फ़रिश्ता जो सामने नहीं आता...पर सपनों को पंख लगा देता है ! मेरे तकदीर की चाभी  हो... तुम मानोगी नहीं , ये जानता हूँ.... अक़्सर सोचता हूँ , मैं मुस्कुराहट को बनाने में ग़र कामयाब हूँ....तो उस मुस्कुराहट की आहट तुम ही हो ! मेरी डिमेरिट है कि मैं सब व्यक्ति  को ख़ुद सा समझ लेता हूँ ! मैं सोचता हूँ , मैं अगर किसी इंसान के बारे में बुरा  भला नहीं बोलता तो वो  भी मेरे बारे में नहीं बोलते होंगे !  कहते है जिसमें हारने की क्षमता होती है , उसमें जरूर जीतने का जूनून होता है ! गुस्सा उस वक्त आता है , जब किसी इंसान को मैं कुछ पूछने पर सत्यता से रु-बरु  कराता हूँ... और वो ये समझता है कि मैं भावना में बह  उसे बता डाला तो वो गलत सोचता है !  मैं इसलिए बताता हूँ क्योंकि मेरी आँखों में पानी है.... ! इंसान को तकलीफ़ होना स्वभाभिक है , हुआ.... !!! तुम बात करती तो आज बहुत रोता... पता है मैं दिल की गहराई से तुमको पसंद करता हूँ ! तुम विश्वास करती हो , मिले बिना जानता हूँ !  पता तो है तुम जानती हो...कि मुझे पसंद हो ! गुस्सा से लाल हो गई थी तुम , पर तुम्हें  अच्छा तो लगा होगा ! मेरी किस्मत भी गतिमान है.... वो बादल की तरह बदलती रहती है ! वो बादल जो कभी लगती है , कभी छट जाती है ! आज तुम्हें बहुत मिस कर रहा , ग़र तुम तक एहसास पहुँचे तो स्वप्न बन ही पर....मेरे सिर पर हाथ फेर जाना ! मैं अकेला महसूस करता हूँ , तो एक तुम्हारी याद ही है जो मुझे हँसने को उत्सुक  करती है ! सच्चा प्रेम करता हूँ , वो प्रेम जो मेरी आँखों में झलकता है.... तुम एक बार बात करो...मुझे जी-भर  रोना है ! हिम्मत किया तुम्हें टोकने का  , पर तुम अनसुना कर रही ! मैं जानता हूँ ,ज़ेहन में तुम्हारे भी हूँ.... सोचती तुम भी हो ! तुम लायक हो , मुझसे बेहतर हो...शायद इसी खातिर तुम मेरी प्रेरणा बनती जा रही हो ! आज सुबह ना जाने क्यों , होली याद आ गयी... जानती हो वो होली खास थी , इसलिए क्योंकि मौन भले था आँगन में...पर तुम सामने तो थी ! मेरे जीवन में कष्ट के दौर बहुत चले , ख़ुद के लिए लड़ना पड़ा ! धमक तुम्हारी जब से हुई मेरे वीरान -एकांत जीवन में...तन्हाई भी मुस्कुराती है... जानती हो तुम भी अपने जगह ठीक हो , मैं तुम्हे सलाम करता हूँ ! मैं बहुत रोता हूँ आजकल , दर्द से कराहता हूँ... उम्मीद करता हालचाल कोई अपना...कोई करीबी लेगा... पर शायद उम्मीद ? बारिश हो रही है ,हवा का झोंका बह रहा... उस झोंकें  में तुम्हारा एहसास पा रहा...सच कहता हूँ , साँसों में अजीब सी हलचल हो बैठी ! तुम ग़र मेरी  भावना को समझ रही हो , तो बस खोज कर लेना... अगर तुम भी भरोसा नहीं करोगी तो सोचों मेरा जीना बेकार है ! आज ख़ुद को ग़र मुकाम पर लाने को उत्सुक हूँ तो उसकी प्रेरणा तुम हो... सिर्फ तुम !!



नवीन आशा



तुलनात्मक अध्ययन

 मेरे शब्द आजकल कम हो गए , लगता है जैसे राह में हम अकेले  हो गए  तुलनात्मक अध्ययन की राह में  रख दिया है हमको  कहो मेरी मुस्कान पर भी अब हर ...