आज पढ़े कवियत्री श्वेता द्वारा रचित कविता ' चाय मेरी हमसफ़र' | श्वेता ,बी.ए इकोनॉमिक्स (ऑनर्स ) की छात्रा है तथा वसंता कॉलेज फ़ॉर वीमेन राजघाट , बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी वाराणसी से पढ़ाई कर रही है |
ना तुम्हारी , ना मेरी,
फिर किसकी थी वो ,
अक्सर हम उसे खुद का कहते ,
गुरुर थी अपनी,
हर दर्दो-गम का इलाज थी वो
गम भुला जिसके कारण
होंठों पर मुस्कान पाया
अनसुलझे सवालों का जवाब थी वो
जवाबों में उभरते ये जख्म
उन जख्मों का मरहम थी वो
साँवली सी थी
पर मन से साफ थी वो
मीठी सी थी जिसमे
घुली थी ममता माँ जैसी
प्यार तो जी भर था उससे
पर वो इश्क़ भी अपने मीठास से भुलवा देती
वो हर मर्ज की दवा थी
मानो खुद में समा ली थी वो
मुझे अपना बना ली थी वो
बिन किसी अपेक्षा के
जब कोई साथ ना था
तो हर पल पास एहसास बन थी
वो कोई नही चाय थी
चाय थी ||
श्वेता
ना तुम्हारी , ना मेरी,
फिर किसकी थी वो ,
अक्सर हम उसे खुद का कहते ,
गुरुर थी अपनी,
हर दर्दो-गम का इलाज थी वो
गम भुला जिसके कारण
होंठों पर मुस्कान पाया
अनसुलझे सवालों का जवाब थी वो
जवाबों में उभरते ये जख्म
उन जख्मों का मरहम थी वो
साँवली सी थी
पर मन से साफ थी वो
मीठी सी थी जिसमे
घुली थी ममता माँ जैसी
प्यार तो जी भर था उससे
पर वो इश्क़ भी अपने मीठास से भुलवा देती
वो हर मर्ज की दवा थी
मानो खुद में समा ली थी वो
मुझे अपना बना ली थी वो
बिन किसी अपेक्षा के
जब कोई साथ ना था
तो हर पल पास एहसास बन थी
वो कोई नही चाय थी
चाय थी ||
श्वेता