(1)
गुनाह ही सही , तो मैं
मजबूर हूँ
कमबख्त मौसम भी साजिश गढ़
रही
सुबह –शाम बारिश की बूंदों
से
तेरे नाम का ज़हर ,मेरे रूह
में भर रही |
(2)
बारिश की झमाझम में
तेरी यादों की बरसात हुई
गिरती हर बूंदों पे
तेरी आवाज सरेआम हुए
कल शाम ही दीदार किया तेरा
आज मौसम भी खुशहाल हुई
बारिश की झमाझम में
तेरी यादों की बरसात हुई |
नवीन कुमार “आशा” (email id : navink310@gmail.com)
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