ठाकुर हवेली, तेजपुर पर, लिखी थी ये कविता | आज आप सभी के सम्मुख प्रस्तुत है | अपनी राय अवश्य प्रस्तुत करें ||
बहन
लड़ती भी,
झगड़ती भी,
पर सच ये भी है
भाई की सफल जीवन
को ले अक़्सर
जी-भर प्रार्थना भी करती
वो ||
बहन,
रूठती भी,
मनाती भी
सच ये भी है लेकिन,
उदास जब देखे भाई
का चेहरा
चुपके नीर बहाती भी ||
बहन,
वो मार्ग है जीवन का,
जो ज्योति बन , मार्गदर्शित
कर जाती अक़्सर ||
बहन,
पागल-मुर्ख भी कह जाती,
मन आनंदित फिर भी हो जाता
बहन,
नहीं देखती भाई गरीब वा है
अमीर
वो हर-पल हँसी के बंधन
में बाँध अक़्सर,
मुस्कराहट से भाई को,
सदैव रखती अमीर ||
बहन,
लड़ती भी
.............. ||
नवीन आशा