आज प्रस्तुत है प्रेम की कविता "धड़कन में तुम " |
"धड़कन में तुम "
उस दौर की बातें में मशरूफ़ हो
चला मन मेरा,
जिस दौर में तुम कोशी से कमला
होते हवा की झोकों की तरह
मन में समाए धड़कन पर अपनी
धाप रख रही थी ||
मेरा मन जानता है तुम्हारे क़दमों
की आहट जिस दिन होगी जीवन में ,
वो दिन शायद इतिहास रचने सा होगा ||
साँसों ने आजकल ख़ुद ही ज़िद से जिद
की ,
शायद साँसों में तुम्हारी एहसास की आहट
महसूस हो रही ||
अजीब होता है प्रेम के एहसास संग ख़ुद
को ज़िंदा रखना,
क्योंकि तुम वो प्रेम हो जिसकी ना आहट है
जीवन में
ना है कोई उससे गिला -शिकवा
बस उसके स्वप्नों को पूरा करने की
खातिर ख़ुद को ख़ुद से लड़ना
में सीखा रहा ||
टूटते-बिखरते मैंने ख़ुद को कई बार
देखा है,
पर फिर ख़ुद को बिखर संभालना
तुमसे ही तो सीखा है||
ख़ुद गंगा के किनारे मीलों तुमसे
दूर जीवन व्यतीत कर रहा ,
शायद ख़ुद का एहसास तुम-तक
पहुँचाने का हुनर सीख़ रहा ||
मैं तुमको महसूस कर हर पल
होंठों को मुस्काता हूँ ,
बस तुम यूँही एहसास अपना भेजती
रहो,
मैं जीवन के सफलतम पड़ाव पर पहुँच
तुम्हारी हर ख़्वाहिश पूर्ण करने को
तैयार ख़ुद को कर रहा ||
नवीन आशा
सारनाथ (वाराणसी )
"धड़कन में तुम "
उस दौर की बातें में मशरूफ़ हो
चला मन मेरा,
जिस दौर में तुम कोशी से कमला
होते हवा की झोकों की तरह
मन में समाए धड़कन पर अपनी
धाप रख रही थी ||
मेरा मन जानता है तुम्हारे क़दमों
की आहट जिस दिन होगी जीवन में ,
वो दिन शायद इतिहास रचने सा होगा ||
साँसों ने आजकल ख़ुद ही ज़िद से जिद
की ,
शायद साँसों में तुम्हारी एहसास की आहट
महसूस हो रही ||
अजीब होता है प्रेम के एहसास संग ख़ुद
को ज़िंदा रखना,
क्योंकि तुम वो प्रेम हो जिसकी ना आहट है
जीवन में
ना है कोई उससे गिला -शिकवा
बस उसके स्वप्नों को पूरा करने की
खातिर ख़ुद को ख़ुद से लड़ना
में सीखा रहा ||
टूटते-बिखरते मैंने ख़ुद को कई बार
देखा है,
पर फिर ख़ुद को बिखर संभालना
तुमसे ही तो सीखा है||
ख़ुद गंगा के किनारे मीलों तुमसे
दूर जीवन व्यतीत कर रहा ,
शायद ख़ुद का एहसास तुम-तक
पहुँचाने का हुनर सीख़ रहा ||
मैं तुमको महसूस कर हर पल
होंठों को मुस्काता हूँ ,
बस तुम यूँही एहसास अपना भेजती
रहो,
मैं जीवन के सफलतम पड़ाव पर पहुँच
तुम्हारी हर ख़्वाहिश पूर्ण करने को
तैयार ख़ुद को कर रहा ||
नवीन आशा
सारनाथ (वाराणसी )
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