Saturday 28 October 2017

परिभाषा

मेरी पहचान हो तुम , मेरे चेहरे की मुस्कान को तुम
जख्म जो देतें हैं अपनें ,उस जख्म का मरहम हो तुम
मेरे टूटें ख्वाबों को , बुननें की ताकत हो तुम
मेरे जीवन की राह हो तुम , मेरे महफ़िल की रौनक हो तुम
बिगरें थे जो रिश्तें , मेरी नादानियों के कारण
उस बिगरें रिश्तों को , सुधारनें का जरिया हो तुम
मेरी पहचान हो तुम ,मेरे चेहरें की मुस्कान हो
रूठने के सिवा , ना आता था कुछ भी
उसें हँसना –हँसाने का , औषधि बना गयी
मेरी पहचान हो तुम , मेरे चेहरें की मुस्कान हो तुम
छुप-छुपकर प्यार जो करता था तुझसें “आशा”
उसें प्यार की परिभाषा सिखा गयी
मेरी पहचान हो तुम , मेरे चेहरें की मुस्कान हो तुम

नवीन आशा
Email id :navink310@gmail.com



Friday 20 October 2017

" लौ ने जिद की "

 कवियत्री मैथिली मूलतः मधुबनी जिला की निवासी है ! वर्तमान में  राँची से वकालत पढ़ रही है ! आज उनकी कविता ' लौ ने जिद की ' आपके समक्ष प्रस्तुत है ! मैथिली का मूल नाम शिल्पा रानी है !


" लौ ने जिद की "



अँधेरे में एक लौ जली है ,
ख़ुशी के आँगन में जो बादल
घिरी दुख के  ,
हटाने की लौ ने जिद की है !
बरसात हो या छाये हो
काले बादल ,
लौ ने उजाला  करने की
जिद की है !
असफलता तो  झुकाती
बुजदिलों को ,
लौ ने उन्हें भी मंजिल पर
पहुँचाने  की जिद की
है !
मंजिल कितना भी दुखदायी हो ,
लौ को तो बस उसके दर पर
दस्तख दे जानी है !
चाहे बुझाए तूफानी हवा इसे ,
इस लौ में तो बस जलने की
रवानी है !
देख़ हिम्मत लौ की ,
ज़माने को भी हिम्मत मिली
निराशा के पथ पर ,
न जानें आशा की एक
लौ जली !

Copyright -मैथिली ( Shilpa Rani )


तुलनात्मक अध्ययन

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