कुछ लिखना आसान नहीं,
कहाँ से शुरू करूँ तुम्हारा किस्सा |
पथ में था अकेला, चाहिए था किसी
साथी का सहारा
जिसे भरोसा हो मेरे हर फैसले पर ,
जिसे बेहद हो निःस्वार्थ भाव-सा प्रेम
तुम्हारे आने से क्या कहूँ हर राह आसान
सी लग रही,
पहली बार कलम और पन्नों को तुम्हारे
लिए उठा रहा
सच कहूँ आज पहली बार कुछ लिखने
में, जी-भर ख़ुद पर प्यार आ रहा
पहली मुलाक़ात हमारी-तुम्हारी,
आँखों में एकांत-सा छिपा प्रेम का इशारा
उन इशारों में जन्म-जन्म का साथ रहने का
वादा
मैं तुमको क्या दूँ, अगर तुम्हारा साथ रहें तो
सच कहता हूँ
हर ख़्वाब तुम्हारा पूर्ण करूँगा,तुम्हारे कहने से
पहले
लड़ना-झगड़ना तुम्हारे मन की बिन कहे सुनना,
सच कहूँ तो दिल की धड़कन पर धमक बिन कहे
दे देता
तुम जब गुमसुम सी होती, सच कहूँ तो तन्हाई को
सोच डर-सा लगता है |
पहली कविता तुम्हारे नाम लिखा हूँ, अब हर कविता
का प्रथम अक्षर तुम-ही हो
उन कविता का शब्द भी तुम, हाँ तुम्हारे आने से
सच कहूँ तो हर जंग आसान सा लग रहा
हाँ ना जानें क्यों तुमसे ख़ुद को दूर करने का
मन अब न कर रहा ||
#नवीनआशा