चलता हूँ ,अरे रुकिए मैं जा नहीं रहा | कुछ यादों के झरोखे संग आपको
रु-बरु करवाने की सोच रहा हूँ | विगत वर्ष के अंत में दिल्ली की यात्रा पर था
,दिल्ली वैसे घर-आँगन जैसा लगता है | आप सोच रहे होंगे “ घर-आँगन कैसा?” | जवाब है
“ जहाँ पहुँच लगे कि यहाँ की खुशबू आपके रोम-रोम को एक अद्भुत शक्ति प्रदान करे
,तो भला कहिये वो घर-आँगन कैसे नहीं लगेगा “ | दिल्ली ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है,
मैं सदैव कर्जदार रहूँगा | 5 वर्ष दिल्ली मे रहा भी हूँ ,पर मंडोली वहीँ अवस्थित
है यह U.G.C NET के एडमिट कार्ड ने बताया | इसमें कोई बड़ी बात
नहीं है ,आप यहीं कह रहे होंगे | इस वक्त आप सही है | नेट की परीक्षा समयावधि सभी
को मालूम ही होगा | परीक्षा था , सुबह 6 बजे घर से निकला मंडोली | लगभग 8 बजे
केंद्र पर पहुंच गया | सुकून मिला आखिर मंडोली को खोज लिया या यूँ कहे उसने बुला
लिया | परीशा आरम्भ हुई , प्रथम पाली की समय-सीमा समाप्त हुई दूसरी पाली की शुरू
हुई उसी बीच मेरी तबियत नासाज हो गयी | ये तो होना था “ भूखे पेट जो था “ | लोग
समझते है विद्यार्थी जीवन सुखद होता है ,वो गलत सोचते है | अच्छा आगे बढ़ता हूँ,
दूसरी पाली समाप्त हुई | “ हम दो दोस्त थे
, मिले और सूर्य की धुप मे खुद को सेकने लगे | सच कह रहा हूँ भूख इतनी जोड़ की लगी
थी की हो रहा था क्या मिले की खा जाऊ | वैसे अगर आप अलग-बगल खाते देखो तो फिर क्या
होता है ये बताना आवश्यक तो नहीं है | हम वहीँ खड़े थे ,तभी एक युवती वहाँ आ पहुँची
तथा हमारे गप-शप सुन मुस्कुरानें लगी | तभी अचनाक उसने दोस्त से पूछा “ आप
अभियन्त्रिकी के छात्र है क्या ? | हामीं भरी उसने | फिर उसने “ बिस्किट का ऑफर
किया “ | उसने मना किया , तपाक से उस्सने
बोला “ यार ज़हर नहीं मिलाया है | हम सभी ठहाका लगाने लगे , बिस्किट ले-कर खा लिया
| फिर तृतीय पाली शुरू हुई, भाई इस पाली मे हमनें समय से पूर्व ही प्रश्न-पत्र हल
कर लिए थे तथा हो रहा था कब घर की ओर निकलूँ | एक बिलखते बच्चें की तरह | अंततः
हमें आज़ादी मिली ,पर जब हम मेट्रो स्टेशन पहुँचे तो मैंने अपने मित्र से कहा “ भाई
भूख तो बहुत लगी थी ,ब्रेक के दौरान पर एक बिस्किट ने वो मुँह मे आकर मिटा गयी “|
हम दोनों फिर होंठो-पे मुस्कान बिखरा डाला | वह बिस्किट का स्वाद आज भी मेरे
जिह्वा पर विराजमान है , “ सही कहते है कि भूखे के लिए थोड़ा सा पानी ही काफी है “|
अब आप ही कहिये जो दिल्ली पल-पल नया तजुर्बा देती है उससे कैसे न याद करूँ तथा उस
युवती को भी कैसे ना याद करूं जो बिस्किट के दम पर जिंदगी की एक सीख से रु-बरु करा
गयी |
नवीन कुमार “ आशा”