उफ़
उफ़ कहाँ हो ! एक- बार सर्द के सुहानें मौसम में आ गुफ़्तगू कर-जा | नााराजगी जायज है , मानता हूँ ! क्या करता मौका ना मिला की चंद दिन तुझसे दूर और रह सकता !
इतना सुनते ही कणिका ने कहा : अभिनव !
अभिनव : चल चाय ना , कॉफ़ी ही सही !
दोनाों मुस्कुराने लगें.................................... तभी दरवाज़े पर खटखटाहट ।
अभिनव............. कौन होगा !
जा देख लगता हैं.......... कॉफ़ी नहीं बन सकेगा..........
दरवाजा खुलते-ही : अरे आप....... इतनी सर्दी में............
सर आपने ही तो कहा था..... लेट से आना..... लीजिए सामान !
वो वहीँ से वापिस चला गया...........
कौना था अभिनव,........ : कणिका
मायके वाले थे : अभिनव
कणिका यह सुन गुस्सें से लाल हो गयी........ और कहा जो मन करता है करो !
कमरें में जा बंद हो गयी..........
अभिनव ने मनाया , पर वो ना मानाी |
" अरे खाना तो बना दो ".......
कणिका आ खाना बना गयी.................
रात के दस बजे , दो अलग- अलग जगह बैठ खाना ग्रहण किया !!
रात के 12 बजे अभिनव ने कणिका को आवाज लगाया......... अरे बहुत हुआ सिकवा - शिकायत....... तुमसे ही में हूँ....... आयना हो मेरी....... देखो मैनें कॉफ़ी बनाया है तुम्हारे लिए.............: अभिनव ने कहा
तभी कणिका निकली : एक प्याली लिए.........
और कहा लो आ गयी.....................
अभिनव ने , कॉफ़ी दिया......... और मुस्कुराते हुए कहा : शादी की सालगिरह मुबारक हो कणिका.............
कणिका : आपको भी....... ये लो आपके लिए आपकी पसंद चाय...............
तभी एक संग दोनों ने कहा : चाहे लाख सिकवा हो....... संग न होगा कम................
तभी अभिनव ने , उपहार स्वरुप एक बंद पैकेट दिया....
...
कणिका ने खोल , तो देख खुश हो कही.......यहीं देने आये थे मायके वाले...
थैंक यू अभिनव........... मंगलसूत्र देने के लिए..... ना भी कुछ देते ,फिर भी उसी प्याली के जैसे हर वक़्त साथ रहूंगी जैसे चाय -कॉफ़ी के बिना वो प्याली नहीं रह सकती........
थैंक यू....
नवीन कुमार "आशा "
उफ़ कहाँ हो ! एक- बार सर्द के सुहानें मौसम में आ गुफ़्तगू कर-जा | नााराजगी जायज है , मानता हूँ ! क्या करता मौका ना मिला की चंद दिन तुझसे दूर और रह सकता !
इतना सुनते ही कणिका ने कहा : अभिनव !
अभिनव : चल चाय ना , कॉफ़ी ही सही !
दोनाों मुस्कुराने लगें.................................... तभी दरवाज़े पर खटखटाहट ।
अभिनव............. कौन होगा !
जा देख लगता हैं.......... कॉफ़ी नहीं बन सकेगा..........
दरवाजा खुलते-ही : अरे आप....... इतनी सर्दी में............
सर आपने ही तो कहा था..... लेट से आना..... लीजिए सामान !
वो वहीँ से वापिस चला गया...........
कौना था अभिनव,........ : कणिका
मायके वाले थे : अभिनव
कणिका यह सुन गुस्सें से लाल हो गयी........ और कहा जो मन करता है करो !
कमरें में जा बंद हो गयी..........
अभिनव ने मनाया , पर वो ना मानाी |
" अरे खाना तो बना दो ".......
कणिका आ खाना बना गयी.................
रात के दस बजे , दो अलग- अलग जगह बैठ खाना ग्रहण किया !!
रात के 12 बजे अभिनव ने कणिका को आवाज लगाया......... अरे बहुत हुआ सिकवा - शिकायत....... तुमसे ही में हूँ....... आयना हो मेरी....... देखो मैनें कॉफ़ी बनाया है तुम्हारे लिए.............: अभिनव ने कहा
तभी कणिका निकली : एक प्याली लिए.........
और कहा लो आ गयी.....................
अभिनव ने , कॉफ़ी दिया......... और मुस्कुराते हुए कहा : शादी की सालगिरह मुबारक हो कणिका.............
कणिका : आपको भी....... ये लो आपके लिए आपकी पसंद चाय...............
तभी एक संग दोनों ने कहा : चाहे लाख सिकवा हो....... संग न होगा कम................
तभी अभिनव ने , उपहार स्वरुप एक बंद पैकेट दिया....
...
कणिका ने खोल , तो देख खुश हो कही.......यहीं देने आये थे मायके वाले...
थैंक यू अभिनव........... मंगलसूत्र देने के लिए..... ना भी कुछ देते ,फिर भी उसी प्याली के जैसे हर वक़्त साथ रहूंगी जैसे चाय -कॉफ़ी के बिना वो प्याली नहीं रह सकती........
थैंक यू....
नवीन कुमार "आशा "