Sunday 20 January 2019

पत्र अंतिम यात्रा से पहले ( भाग -4 )


आज मोतिहारी से याद कर रहा | वो मोतिहारी जो कर्मभूमि है पहली | कुछ यादगार लम्हें है , जिसने बहुत कुछ सिखाया | कुछ मीठे पल तो कुछ खट्टे , जीवन में ये दोनों चीज अहमियत रखती है | न जाने आज ख़ुद को कोसने का जी कर रहा | कुछ लम्हों को जब सोचता हूँ , तो लगता है फ़फ़क -फ़फ़क रो दूँगा | वहीँ जब कुछ लम्हों को सोचता हूँ , तो लगता है ठहाका लगाने लगूँ | लगन संग जीवन में ग़र कुछ किया जाए तो सफलता अवश्य कदम चूमती है | मेरे जीवन की सच्चाई है , कष्ट संग उबरने का ताकत पाना | तुम सोच रही होगी , आगे न पढ़ूँ... तुन्हें इस खातिर इन बतों से रु-बरु करा रहा कि तुम कभी -भी ज़मीं ना छोड़ों | मैं जानता हूँ , तुम बिल्कुल उस फूल की भाँति हो...जो अपनी खूबियां जानती है , पर ख़ुद को कभी काबिल नहीं समझा | तुम मेरे जीवन की सबसे अनमोल हीरा हो , जो दूर रह मेरे जीवन को सदैव निर्देशित करती हो | पता है आजकल बहुत थक जाता हूँ , पर चाह की चुस्की जब लेता हूँ...तो महसूस तुम्हें करता हूँ | मुस्कुरा रही हो , शर्म से चेहरा लाल हो गया होगा.... जब तुम शर्माती हो , सच कहता हूँ ख़ुद को भूल बैठता हूँ... तुम्हारी आँखों में खोजने लगता हूँ ख़ुद को | इत्तफाक है , जब -जब तुम्हें याद किया...तुम किसी न किसी बहाने मेरे सामने आ जाती हो | समय भी अजीब है ना , मैं मोतिहारी में ख़ुद को जमा रहा...तुम वादियों में शायद.... अजीब इत्तफाक है पर यह इत्तफाक नहीं | जुड़ाव है... दूर रह एक दूजे को समझने की | सुना हूँ पाक- विद्या में निपुण हो , काश चाह पूर्ण होती | होंठों पर हल्की मुस्कान बिखरी शायद.... मजाक को सीरियस मत लो..... निपुण होना कठिन है , हाँ गुणवान बनो..... तुम गुणी हो , तुम मेरी मार्ग हो... बस मार्ग यूँही बनाये रखना... तरक्की तो ज़बरदस्त मिलेगी | अरे मोतिहारी की खासियत तो बताना भूल गया , कभी जब संग होंगे तो अहुना जरूर खिलाऊंगा..... मजेदार और स्वादिष्ट होता है.... बस स्टैंड के समीप वाले होटल में | वैसा ही फेमस होटल है जैसा तुम्हारे शहर में |एहसास भी अजीब , मन कह रहा कि तुम्हारे होंठों को निहारते रहूँ या यूँ कहूँ तो उसमें डूब जानें को जी कर रहा | अक़्सर तुम्हें देखता हूँ , कल शाम की बात है नदी किनारे बेंच पर तुम ठंड के मौसम में बैठी..जैसे कह रही हो इंतज़ार की हद होती है | सादगी के क्या कहने , मैं तो दीवाना हूँ... जानती हो ख़ुद को मायूस जब पाता हूँ तुम्हें जी-भर  याद करता हूँ | मैं तुम-संग  जुड़ ना जानें ख़ुद को दुनिया का श्रेष्ठ प्रेमियों के कतार में ख़ुद को पाता हूँ | तुम वाकिफ़ हो मेरे हर शब्द से , पर तुम इतना नहीं कह पा रही कि मैं काबिल हूँ या नहीं ?  आज एक बात बताना चाह रहा , तुम बेशक़ इकरार नहीं कर पा रही पर धड़कन के सरगम में मेरे नाम का जो शोर हो रहा...वो बिन कहे  उन वादियों में घुल रहा , जहाँ तुम बस रही हो | जीवन की आपाधापी में व्यस्तता इतनी हो चली है कि लोग ख़ुद के एहसास को जीते है दूसरों के संग | मेरा एहसास भी तुम हो , मेरी तकलीफ़ भी तुम | नाराज़ हो गयी होगी तुम , पर यह तकलीफ़ ही तो है कि तुम सब जानकर भी मुझे अपना मानने से इंकार कर रही | अगर तुम्हें प्रेम नहीं तो क्यों सादगी से जीती हो , क्यों मुझे जो पसंद है उसमें ख़ुद को रचती हो...क्यों हर-पल मेरे साँसों की गर्माहट में ख़ुद का रस भरती हो | कल रात पलकों ने भी साथ छोड़ दिया था , जानती हो उन पलकों को भी तुम्हारा इंतज़ार रहता है | आज अचानक दो साल पहले की वो जनवरी याद आ बैठी , शीतलहर चरम पर थी... मेरे अंग -अंग में कपकपाहट सी थी... उसी पल तुमने फंक्शन में अपना कदम डाला , ना जानें मेरी कपकपाहट दूर हो , ख़ुद को ख़ुद से उठापटक करने में मसगुल हो बैठा | मेरे जीवन की तुम वो पन्ना हो , जो पास ना हो-कर भी मेरे लबों पर सदैव आनंद की क्रीड़ा करती हो | एक बात कहूँ नीला तुम-पर जचता है , और हाँ नदी की ख़ूबसूरती भी बढ़ गयी है....तुम्हारे उसे पास बैठने से |




नवीनआशा  

तुलनात्मक अध्ययन

 मेरे शब्द आजकल कम हो गए , लगता है जैसे राह में हम अकेले  हो गए  तुलनात्मक अध्ययन की राह में  रख दिया है हमको  कहो मेरी मुस्कान पर भी अब हर ...