Saturday 31 October 2020

 बेटियों को समर्पित यह कविता | लक्ष्मी का वो रूप होती है बेटियाँ जो सदैव अपने पिता के हृदय के समीप होती है | आप-सभी पाठक राय अवश्य दें | 


मैं निराश था जीवन में ,
तकलीफ़ की आहट चहोंदिशा 
थी ,
पर एक दिन किलकारी गूँजी ,
ईश्वर ने दिया अलमोल तोहफ़ा ,
घर को संपूर्णता मिली , आदिशक्ति 
स्वरूपा ने जो जन्म लिया 
पहली दफ़ा जब नन्ही-सी गुड़िया को,
गोद में लें पुचकारा 
हर दर्द जैसे उसी पल रुख़सत पा लिया ||
बेटियाँ घर के हर कोने की संगीत होती है,
पिता की वो प्रेरणा होती है, जो स्वप्न को 
जगा उसे पूर्ण करने का हौसला देती है ,
बेटियाँ वो मुस्कान होती है, जिसमें माता-पिता की 
छुपी जान होती है ||
बेटियाँ अलंकार है उन छंदों का,
जिसके बिना हर अभिभावक की कविता 
अधूरी होती है 
बेटियाँ वो शाम होती जीवन की,
जब थके-हारे पिता दफ्तर से आ,
उनके हाथों से पानी पी अक़्सर ,
हर थकावट ख़ुद से दूर पा लेते 
पुत्री के स्नेह और चरण की दस्तक ,
जीवन में अगर हो जाए 
जो हर स्वप्न सच हो जाता 
जान-प्राण होती है बेटियाँ,
माँ-पिता का अभिमान होती है बेटियाँ ||

नवीन आशा 


Friday 30 October 2020

 " नई ज़िंदगी " सोनू माही द्वारा रचित ये कविता ' प्रथम कविता प्रतियोगिता-2020' में सांत्वना पुरस्कार हेतु चयनित किया गया है | यह कविता ज़िंदगी की अहमियत  का संदेश देते दिख रही है | आप-सभी अपनी राय अवश्य दें |

नई ज़िंदगी 

चलो, एक ज़िंदगी और जीते है 
ग़म के आलम में थोड़ी ख़ुशियाँ 
बिखराते है,
उदास चेहरे को हँसी से चमकाते है,
चलो, एक ज़िंदगी और जीते है ||
अपनों के संग वक़्त बिताकर ,
चलो पुरानी बातों को याद करते है 
चलो ,एक ज़िंदगी और जीते है ||
रिश्तों की बुनियाद को ज़रा गंभीरता 
संग लेते है,
चलो, इस बंधन को थोड़ा मज़बूत कर,
अपनों को मोहित करते है 
चलो, एक ज़िंदगी और जीते है ||
काल्पनिक दुनिया से बाहर निकल,
वास्तविकता को गले लगा खुशियाँ 
सजाते है 
चलो, एक ज़िंदगी और जीते है ||


सोनू माही 
दरभंगा, बिहार 





Friday 23 October 2020



प्रस्तुत है " पतझड़ ", सुश्री कृतिका शर्मा के द्वारा लिखीं इस कविता में जीवन की सच्चाई दिखती है | " प्रथम कविता प्रतियोगिता-2020" में सुश्री शर्मा की इस कविता को सांत्वना पुरस्कार हेतु चयनित किया गया है | यह कविता पतझड़ के बहाने 'महत्वता ' को समझाने का कार्य कर रही दिखती है | आप-सभी पाठक अपनी राय अवश्य दें |




शाखों ने जगह नहीं दी उस पत्ते को,
ना ही हवाओं ने उसे रोका,
टूट गया फिर वो सब से,
दूर कहीं खो गया,
अवारा सा घूमता था,
बेपरवाह सा झूमता,
बेफिक्र हो गई ज़िन्दगी,
अनजाना सा सफ़र हो गया,
किसी ने ना ढूंढा उसे,
किसी ने ना पूछा,
इस पतझड़ के मौसम में,
वो पता नहीं कहाँ सो गया ||



कृतिका शर्मा
अम्बाला, हरियाणा










Thursday 22 October 2020

 

'प्रथम कविता प्रतियोगिता -2020 ' में पांचवें स्थान पर  सुश्री  निवेदिता पांडेय की कविता 'अधिकार'  का चयन किया गया है | आप-सभी  पाठक अपनी राय अवश्य दें |


                अधिकार

अक़्सर तानों का डेरा रहता,

लड़की हूँ ये कह कर हर वक़्त

जीने का अधिकार हमसे छिना
जाता ?
लड़की हो क्या करोगी पढ़कर,
पढ़-लिख भी तो चूल्हा तुम्हें ही
जलाना होगा ।
लड़की हूँ तो क्या अरमान मेरे
मन के भीतर ना उभरे,
 क्यों अक़्सर लड़की कह मुस्कुराने
का अधिकार भी जग हमसे छिने ? 
मौका अगर मिले बेटीयों को आसमान में
ख़ुद के बल विचरण कर लेंगी ,
फिर क्यों राह चलते हर कोई बेटी होने
 का तंज दे जाते अक़्सर ?
बेटी घर की होती लक्ष्मी 
 ये तो अक़्सर हमने सुना है ,
फिर क्यों भाई के कंधे से कन्धा मिला
 चलने पर
बेटी कुलक्षणी कहलाती है ?
 पिता की लाडली बन हर सम्मान
दिलाने की ज़ज़्बा रखती है बेटियाँ,
 फिर क्यों अक़्सर  अपने ही घर में
दुलार-प्यार से वंचित रहती है बेटियाँ ?
एक बार मौका दे देखो नाज़ करोगे
बेटी पर,
मान बढ़ाएंगी-कुल का दीपक जलाएंगी
 बूढ़े पिता का श्रवण कुमार कहलाएंगी
आखिर कब-तक अग्नि के ताप में यूँ
ख़ुद को जला मुस्कुराए एक लड़की ,
 दो तो एक मौका समाज का नाम बढ़ाये
एक लड़की
यूँ अबला बन उसे बूत ना बनाओं ,
 जग की शान होती एक लड़की
घर का दीपक होती एक लड़की
 फिर क्यों अक़्सर तानों के घेरे में
ख़ुद को रख
बिना किसी सहारे चलती एक लड़की ||

निवेदिता पांडेय, 

Mau , U,P



Wednesday 21 October 2020

"प्रथम कविता प्रतियोगिता -2020" में चतुर्थ स्थान पर सुश्री गुड़िया कुमारी की रचित कविता ' मेहनत ' को चुना गया है | सभी पाठक अपनी राय अवश्य दें |

 



मेहनत


मेहनत ही तो है, जो किसी गरीब को अमीर बना देती है।

मेहनत ही तो है, जो हमें अपने लक्ष्य तक पहुँचने का सपना दिखाती है।

मेहनत ही तो है, जो ज़िन्दगी के संघर्ष भरी राह में चलने की प्रेरणा देती है।

मेहनत ही तो है, जिसमें गिर के उठना, उठ के गिरना;
ज़िन्दगी में निरंतर चलने का साहस देती है।

मेहनत ही तो है, जो ज़िन्दगी की कठिनाइयों को पार कर के,
सुखों के सागर तक पहुँचा देती है।

मेहनत ही तो है, जो ज़िन्दगी के अंधकार भरी राह में,
दिया बनकर रोशनी की ओर राह दिखाती है।


गुड़िया कुमारी 
नासिक , महाराष्ट्र 



 'प्रथम कविता प्रतियोगिता -2020 ' में तृतीय स्थान  हेतु सुश्री शिवानी द्विवेदी की कविता 'गुज़ारिश '  का चयन किया गया है | आप-सभी  पाठक अपनी राय अवश्य दें |


गुज़ारिश है ऐ ज़िंदगी !
चंद लम्हों की ख़ुशियाँ मत छिन,
डूब के आई हूँ गम की दरियाँ से 
थोड़ा तो ठहर !
थोड़ा तो ठहर !
वक़्त की बात है , साँझ के बाद रात है 
रात के कहर को हटा 
सूरज की किरणों की सुबह दिला,
अँधेरे में भी  दीपक की जरूरत है 
ऐ ज़िंदगी !
सुखी डाल पर बैठ पक्षी भी अक़्सर ,
वक़्त की बात कर , जीवन खुशियों से भर देती थी 
आँखों में नमी ,होठों पर मुस्कान लिए,
तेरे हर इम्तिहान को हम पार किया करते 
है 
ऐ ज़िंदगी ! बस इत्ती-सी गुज़ारिश !
चंद लम्हों की खुशियाँ मत छिन 
तुझे टूटते तारों की कसम ,
रुक जा ,ठहर जा तो ज़रा 
बिना तेरे कहानी मेरी है अधूरी 
थोड़ा तो ठहर !
थोड़ा तो ठहर !
ऐ ज़िंदगी , बस इत्ती-सी गुज़ारिश ||


शिवानी द्विवेदी 
जौनपुर , उत्तर प्रदेश 








Monday 19 October 2020

 प्रथम कविता प्रतियोगिता-2020 में द्वितीय पुरस्कार हेतु ' श्रीमती अनुभा श्रीवास्तव' की कविता का चयन किया गया है | पाठक के समक्ष कविता ' दुआ  ' तथा आप-सभी अपनी राय अवश्य प्रदान करें |


एक कमरा जिसमें,
बड़ी-बड़ी हो खिड़कीयाँ 
चाँदनी जिसमें कभी ,
अँधेरा होने देती नहीं 
रसोई से जो दूर हो  
वो मुझे चाहिए 
मिर्ची की दौंक जरा भी ,
बर्दाश्त कर सकता नहीं |
धूल-गंदगी में पल-भर ,
रह पाता नहीं 
गर्मी और ठंढ भाता नहीं 
कड़े बिस्तर चुभते है, 
नर्म तकिया है सही 
बाग़ में एक झूला भी 
लगा हो जरा 
जिसपर बैठ सुबह में अक़्सर,
अख़बार पढ़ने बैठता |
हो कोई कमरा ऐसा तो,
घर जैसा जिसे है संवारना 
लाल आएगा मेरा जब हो  ना उसे,
मुझ जैसी तकलीफ़ कोई |
है मेरी दिल से दुआ, 
इस घर की जरुरत ना पड़े ,
अपनों के बीच से ही 
मौत संग अर्थी उठे 
जीते-जी कोई अभिवावक,
बेमौत मुझ सा ना मरे ||



अनुभा श्रीवास्तव 
नई दिल्ली 


Friday 16 October 2020

"आशा - संगम एहसासों का" के द्वारा आयोजित प्रथम कविता प्रतियोगिता-2020 में प्रथम पुरस्कार हेतु सुश्री स्तुति द्विवेदी द्वारा रचित कविता को चुना गया |  सभी पाठक के समक्ष उनकी रचित कविता| इस कविता में एक चिंतन देखने को मिल रहा | आप-सभी पाठक अपनी राय अवश्य प्रदान करें | 



स्कर्ट हमारी छोटी हुई तो 
मन तुम्हारा बहक गया 
पर फिर क्यों मासूमों पर 
कहर तुम्हारा बरस गया 
हैवान की हैवानियत 
गलती बता कर छुपा दी 
और हमको ही ना जाने 
कितनी नयी सलाह दी 
ऐसी लड़कियों के साथ 
यही होता है..ये टैग तक लगा दिया 
और अपने वहशीपन को
शाबाशी का ताज पहना दिया
ये है वहीं जो दस्तक देते
अनजान बन कतार में 
ये है वहीं जो निकल जाते 
भीड़ की आड़ में 
ये है वहीं जो चिपक जाते 
मेट्रो की भीड़ भाड़ में
 ये तो नहीं सुधरेंगे 
अब हमें ही जागना होगा 
इनकी सीमा बतला दो कि 
इन्हें वहीं रुकना होगा 
अगर हम सहते रहे तो 
ये बीमारी नहीं जाएगी 
चौराहे नुक्कड़ पर हर रोज
एक नयी निर्भया मारी जाएगी 
एक नयी निर्भया मारी जायेगी 




स्तुति द्विवेदी 
वाराणसी, उत्तर प्रदेश



तुलनात्मक अध्ययन

 मेरे शब्द आजकल कम हो गए , लगता है जैसे राह में हम अकेले  हो गए  तुलनात्मक अध्ययन की राह में  रख दिया है हमको  कहो मेरी मुस्कान पर भी अब हर ...