Tuesday 24 June 2014

कौन हो तुम कुछ तो बताओ

कौन हो तुम कुछ तो बताओ
यूँ आँखों ही आँखों से नींद ना चुराओ |
एहसासों के बंधन में बंध सा गया
क्योंकि पास रहकर भी दूर रहता गया  |
अँधेरा भी सुकून भरी आह-भर  रही
क्योंकि अँधेरे को भी तेरी खूबसूरती भा गयी  |
कौन हो तुम कुछ तो बताओ
यूँ इक झलक दे-देकर रातों की नींद ना चुराओ |
बरामदें पे बैठना जिसे नापसंद था कल-तक
उसें भीड़ में रहनें की अहमियत सिखा गयी
कौन हो तुम कुछ तो बताओं
यूँ-ही हरपल बातों से ना उलझाओ |
“आशा “खुद को पाता था अकेला
अकेलेपन में रहकर ठहाकों का दर्पण दिखा गयी |
कौन हो तुम कुछ तो बताओ
इक-पल ही सही घूँघट तो उठाओ|

नवीन कुमार “आशा”
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