Saturday 8 October 2016

बिन मतलब , मुस्कुराता खुद


लड़ता भी ,खुद से
रूठता भी ,खुद से
वकील भी , बनता खुद
सजा भी , सुनाता खुद
मौन रहना , सीखा नहीं
बिन मतलब , मुस्कुराता खुद
आयना ज़िंदगी का, खुद से ही
कारण शायद सटीक है ,
खुद-को-खुद पर ,जी-भर यकीन है |

नवीन कुमार “आशा “
दरभंगा

टॉक टू यू लेटर


फोनवा कैसा रखे है ? बड़का है या छोटका ? मायनें ये नहीं रखता | फ़ायदा तो कुछो न है ,काहे की फ़ोनवा तो फैशन हो गया | फ़ोनवा लगा रहे हो ,तो सचेत रहे फोनवा पीक न होगा | बाद मे , मिसिज मिलेगा “ बिजी .....टॉक टू यू लेटर “ | भावना मे बह-रहा कि अचानक याद आया “अरे मेला का सीजिन चल रहा है | फ़ोनवा न उठानें का कारण शायद यह भी हो सकता है “ कहीं सनेश न मांग ले “ | 
नवीन कुमार “आशा “

तुलनात्मक अध्ययन

 मेरे शब्द आजकल कम हो गए , लगता है जैसे राह में हम अकेले  हो गए  तुलनात्मक अध्ययन की राह में  रख दिया है हमको  कहो मेरी मुस्कान पर भी अब हर ...