लड़ता भी ,खुद से
रूठता भी ,खुद से
वकील भी , बनता खुद
सजा भी , सुनाता खुद
मौन रहना , सीखा नहीं
बिन मतलब , मुस्कुराता खुद
आयना ज़िंदगी का, खुद से ही
कारण शायद सटीक है ,
खुद-को-खुद पर ,जी-भर यकीन है |
नवीन कुमार “आशा “
दरभंगा