Monday 6 November 2017

चलता जा राही


कवियत्री मैथिली द्वारा रचित कविता "चलता जा राही" प्रस्तुत है !







राहें अनजानी सही, मंजिल तो बनाना  है
अपनी मेहनत से हमे यूँ ही चलते जाना है।
सुख और दुःख तो साथी है सफर के
सही और गलत में चैन  संग
मुस्कुराना  है।

हर चौराहा चिढाता तुझे
हर राही तकता तुझको
हँसता हैं अंधेरा अक्सर
सन्नाटे का तो काम ही डराना है।

भरोसा कर अंजानों पर
पर अक्ल का दामन ना छोड़ तू
अंतर्मन की बातें अनसुनी ना कर
शायद किस्मत को उसी के बल जगाना
 है।

भरोसा कर खुद पर
थाम ले मेहनत का दामन
मंजिल दुर सही पर
इन राहों पर तुझे चलते जाना
 हैं।

चलता जा राही  , हर सीख गांठ बांध ले जिंदगी का
 तू
तेरा काम ही चलते जाना है।



मैथिली
मधुबनी




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