Sunday 13 September 2020

हिंदी दिवस की आप-सभी को शुभकामना | इस अवसर पर आज पढ़िए सुश्री आकर्षिता सिंह द्वारा लिखित कविता | आकर्षिता सिंह वाराणसी में रहती तथा पत्रकारिता की छात्रा है | 

इस जिंदगी में जो करना था, जो करना है 
और जो करना चाहते हैं ।
 उसकी उम्मीद, उसके ख़्वाब, उसकी ख़ुशी, 
कभी टूटने, छूटने या बिखरने मत दें। 
क्योंकि ज़नाब, 
ये जिंदगी बड़ी छोटी और प्यारी सी है। 
जो एक हसीना की तरह कब मुँह मोड़ जाये, रूठ जाये, 
बेवफाई कर साथ छोड़ जाये पता नहीं।

 इस जिंदगी में चंद दिनों की मोहलत और ढेर सारे अरमान हैं। 
जब अरमानों से इश्क़ बेहद और बेपनाह हो। 
तो कल की फ़िक्र में रोया नहीं करते। 
आज की ऊब में सोया नहीं करते। 
रोज़ के पश्चातापों में दिन बिताया नहीं करते । 
यूँही क़िसी की याद में बेशूमार डूब कर मर जाया नहीं 
करते। 
बल्कि सुबह से शाम तक का
 हर एक पल यादगार बनाया करते हैं। 
अपनी हरकतों से, अपनी बातों से , 
अपनी खुशियों से, अपनी मुश्कुराहटों से,
 अपने सपनों से, अपने अपनों से, 
अपने कामों से, अपने इश्क़ से, 
अपने जूनून से, अपने आज़ से।।
 ज़नाब, 
मरने से पहले अभी थोड़ा जीना है हमें। 
आख़िरी साँस लेने से पहले, 
जी भर कर अपने फेफड़ों को खुशियों से भरना है हमें। 
आँखे बंद होने से पहले, 
इन समाँओं, वादियों, फूलों, झरनों को जी भर निहारना है
 हमें। 
अपने आख़िरी वक़्त को महसूस करने से पहले
 इस ख़ूबसूरत-सी धरा को नापकर महसूस करना है हमें।। 

सुश्री आकर्षिता सिंह



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