कौन हो तुम कुछ तो बताओ
यूँ आँखों ही आँखों से नींद
ना चुराओ |
एहसासों के बंधन में बंध सा
गया
क्योंकि पास रहकर भी दूर
रहता गया |
अँधेरा भी सुकून भरी आह-भर रही
क्योंकि अँधेरे को भी तेरी
खूबसूरती भा गयी |
कौन हो तुम कुछ तो बताओ
यूँ इक झलक दे-देकर रातों
की नींद ना चुराओ |
बरामदें पे बैठना जिसे
नापसंद था कल-तक
उसें भीड़ में रहनें की
अहमियत सिखा गयी
कौन हो तुम कुछ तो बताओं
यूँ-ही हरपल बातों से ना
उलझाओ |
“आशा “खुद को पाता था अकेला
अकेलेपन में रहकर ठहाकों का
दर्पण दिखा गयी |
कौन हो तुम कुछ तो बताओ
इक-पल ही सही घूँघट तो
उठाओ|
नवीन कुमार “आशा”
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