Monday 5 September 2016

सैर करना है ...........का हुआ


सैर करना है ...........का हुआ,  लड़ाई-झगड़ा करना है का ? |  चलिए एगो इंसान से मिलाते – जुलाते है आप-सभी को | चरम नाम सुने है , अरे किसी का नाम नहीं बल्कि उल्लास का वो समय जिसका अंत नहीं | हाँ – ना मे लिपटा हूँ, सोच रहा कहा से शुरू करूँ | श्री गणेश करता हूँ ...... जय श्री गणेश |
सागर जी , यह नाम याद आया जिस समय ग्लास से भरे दूध ने लबों को छुआ | उनसे पहली मुलाक़ात अखबार के जरिये हुआ | जब बड़े-बड़े अक्षरों मे लिखा “ गाँव का छोड़ा , समुन्द्र्र पार छोड़ेगा अपनी छाप “ | अखबार देखते ही जी चाहा “ मिलना-मिलाना हो जाए “ | सोच रहे होंगे कि मैं पगला गया अखबार पढ़ कर ,तो कह दूँ : हाँ | सागर जी भी एक लेखक जो ठहरें |
बारिश आज छोड़ कल का नाम नहीं ले रही थी , जब सुदूर देहात मे बसे उनके घर पड़ पहुँचा |  कोई भीड़ न , न कोई घर के आजू-बाजू | आवाज दी “ लेखक सागर जी है ? “
तभी अचानक घने बालों वाला , धोती और कंधे पर तौलिया लिए एक आदमी निकला “ कुर्सी दी , चला गया दो मिनिट रुकिए कहकर “
मन-ही-मन सोचने लगा “ बड़े लोगों की बड़ी बात ? “
फिर दो मिनिट के बाद वहीँ शख्सियत , हाथ मे थाली लिए जिस-पर पानी-चाह  | कहा – ग्रहण कीजिए |
दंग सा रह गया , फिर पूछा : सागर जी है क्या ?
उन्होंने कहा : कहाँ से ,और कौन है आप ?
सरल भाषा मे जवाब दिया “ मेरा नाम उन्मुक्त लाल , दरभंगा से आया हूँ “
आदमी मुस्कुराया “ कहा मुक्त हो जाए उन्मुक्त बाबू , आप उसी सागर से बात कर रहे है “
अचम्भित हो आँखों को मलते हुए पूछा “ आप सागर जी ? “
उन्होंने  कहा “ हाँ “
फिर वो आसमान की ओर देख कुछ बड-बड़ाने लगें “ बारिश का मौसम , ख़ुशनुमा माहौल ,होंठो पर मुस्कान , मुँह के भीतर पान | अलग-सा है | इतफ़ाक तो नहीं ? | “
मैंने टोका – श्रीमान ,क्या बोल रहे है ?
सागर जी : दो लाइन छुट गया था ,वो मन-के अंदर रच डाला | मुस्कुरानें लगे फिर |
अब रोमांच बढ़-सा गया , उनसे जी-भर बात करने के लिए |
सिलसिला बढ़ा , पूछा : बधाई हो | आप रोमांचित है “ अमेरिका जाने को “ ?
उन्होंने कहा : धन्यवाद | एक सवाल पहले मेरा जवाब आपका ?
पूछें श्रीमान : मैंने कहा
सागर जी : क्या आप रोमांचित थे , मुझसे मिलने हेतु ? क्या आप रोमांचित थे मेरी रचनाओं को पढ़कर ?
मैंने कहा : श्रीमान , रोमांच था आप-से मिलने का | हाँ , रचना पढ़ी पर सत्य यह है कि कम | कम से मतलब कि जो रचना अखबार मे , आपके साक्षात्कार के संग छपी थी |
वो दबी मुस्कान संग बोले : आपके-ही उत्तर मे , मेरा भी उत्तर छिपा है |
फिर भी जवाब दे रहा “ गाँव के कमरे मे कविता-कहानी लिखनेवाला , मातृभाषा की सेवा करने जा रहा “ उनके आवाज मे दर्द की अनुभूति हुई |
प्रश्न किया : आप गाँव से निकल सीधे विदेश जात्रा पर जा रहे है उत्सुक है ?
सागर जी : सफलता के प्रति कौन उत्सुक नहीं होता , उत्सुक हूँ वायुयान की ,अरे का कहते है हेरोप्लन ................ ठहाका लगाने लगे |
पुनः : अरे माफ़ करे , निकलना है पटना | ओ हेरोप्लन पकड़ना है | हम-दोनों हँसने लगे |
आज सागर जी के नाम , चर्चित लोगों मे जानी -जाती है | पर एक समय था ,जो पहचान बनाने के खातिर कमरों मे बंद रहा करते थे | तानों की बरसात झेलते थे | जैसा उन्होंने बताया |
सागर जी आज-भी विदेश जात्रा पर निकले , जैसे गाँव के चौराहों पर जाया करते ................ कुर्ता- धोती ,गमछा और चेहरें पर दबी मुस्कान |
मेरी इस सैर से एक-बात का एहसास हुआ “ राह , पहचान कठिन जरुर पर मुसाफ़िर चाहें तो मंजिल पाना   न मुश्किल “ |


नवीन कुमार “आशा “
दरभंगा

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