Tuesday 27 September 2016

दिल की घंटी बज जाए


आज जो कविता प्रेषित कर-रहा , मेरे प्रिय अंशु के दुआरा सुझाया विषय पर केन्द्रित है |
 ...............................................................................................................................

,मैं सैर पर निकला
वादियों-पर्वतों के बीच
प्रकृति के सोन्दर्य निहारते,
एक युवती को देखा
बला की सुंदर थी वो
पर उदाहरण थी सादगी की
न थी कोई आभूषण को पहनें
न थी पहन सृंगार का चोला
सभी वादियों मे थे मशरूफ़
बेकरार-बन देखने को
कुदरत का नज़ारा
पर मैं व्याकुल था
धड़कन मे उसे बसाने को
था दूर यूँ बैठा
कि हकीकत समझ-न पाए
पर इशारों-इशारों मे ही-सही
दिल की घंटी बज जाए
तभी न-जानें बंद नयनों को
खोल क्यों बैठा
न-जानें औझल उसे कर-बैठा
वो परी नहीं
स्वप्न थी
जो तन्हाई के आलम मे भी
“ आशा “ संग जीना सिखाया ||

नवीन कुमार “आशा “

No comments:

Post a Comment

तुलनात्मक अध्ययन

 मेरे शब्द आजकल कम हो गए , लगता है जैसे राह में हम अकेले  हो गए  तुलनात्मक अध्ययन की राह में  रख दिया है हमको  कहो मेरी मुस्कान पर भी अब हर ...