आज जो कविता प्रेषित कर-रहा , मेरे प्रिय अंशु के दुआरा सुझाया विषय
पर केन्द्रित है |
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,मैं सैर पर निकला
वादियों-पर्वतों के बीच
प्रकृति के सोन्दर्य निहारते,
एक युवती को देखा
बला की सुंदर थी वो
पर उदाहरण थी सादगी की
न थी कोई आभूषण को पहनें
न थी पहन सृंगार का चोला
सभी वादियों मे थे मशरूफ़
बेकरार-बन देखने को
कुदरत का नज़ारा
पर मैं व्याकुल था
धड़कन मे उसे बसाने को
था दूर यूँ बैठा
कि हकीकत समझ-न पाए
पर इशारों-इशारों मे ही-सही
दिल की घंटी बज जाए
तभी न-जानें बंद नयनों को
खोल क्यों बैठा
न-जानें औझल उसे कर-बैठा
वो परी नहीं
स्वप्न थी
जो तन्हाई के आलम मे भी
“ आशा “ संग जीना सिखाया ||
नवीन कुमार “आशा “
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