Monday 19 October 2020

 प्रथम कविता प्रतियोगिता-2020 में द्वितीय पुरस्कार हेतु ' श्रीमती अनुभा श्रीवास्तव' की कविता का चयन किया गया है | पाठक के समक्ष कविता ' दुआ  ' तथा आप-सभी अपनी राय अवश्य प्रदान करें |


एक कमरा जिसमें,
बड़ी-बड़ी हो खिड़कीयाँ 
चाँदनी जिसमें कभी ,
अँधेरा होने देती नहीं 
रसोई से जो दूर हो  
वो मुझे चाहिए 
मिर्ची की दौंक जरा भी ,
बर्दाश्त कर सकता नहीं |
धूल-गंदगी में पल-भर ,
रह पाता नहीं 
गर्मी और ठंढ भाता नहीं 
कड़े बिस्तर चुभते है, 
नर्म तकिया है सही 
बाग़ में एक झूला भी 
लगा हो जरा 
जिसपर बैठ सुबह में अक़्सर,
अख़बार पढ़ने बैठता |
हो कोई कमरा ऐसा तो,
घर जैसा जिसे है संवारना 
लाल आएगा मेरा जब हो  ना उसे,
मुझ जैसी तकलीफ़ कोई |
है मेरी दिल से दुआ, 
इस घर की जरुरत ना पड़े ,
अपनों के बीच से ही 
मौत संग अर्थी उठे 
जीते-जी कोई अभिवावक,
बेमौत मुझ सा ना मरे ||



अनुभा श्रीवास्तव 
नई दिल्ली 


6 comments:

  1. बहुत सुंदर ������

    ReplyDelete
  2. एक कारुणिक यथार्थ का चित्रण...
    बच्चे के द्वारा मिले कष्ट के बावजूद उन्हें कोई कष्ट न हो इसकी फ़िक्र..
    माता-पिता के निश्छल निर्मल प्यार को दर्शाती एक करूण रचना... 👍

    ReplyDelete
  3. एक कारुणिक यथार्थ का चित्रण...
    बच्चे के द्वारा मिले कष्ट के बावजूद उन्हें कोई कष्ट न हो इसकी फ़िक्र..
    माता-पिता के निश्छल निर्मल प्यार को दर्शाती एक करूण रचना... 👍

    ReplyDelete

तुलनात्मक अध्ययन

 मेरे शब्द आजकल कम हो गए , लगता है जैसे राह में हम अकेले  हो गए  तुलनात्मक अध्ययन की राह में  रख दिया है हमको  कहो मेरी मुस्कान पर भी अब हर ...