जो बूंद ठहरी पत्तों पर ,
उसको तो गिरना ही था |
गलती क्या उन पत्तों की ,
जिसकी सतह हो वजूद उसका |
क्या गलती उस बूंद की ,
सामने जिसके कोई रास्ता ना था |
आ हवा उड़ा ले गयी ,
फिर मिल गयी मिट्टी में जा आखिर |
जो बूंद ठहरी .............................
उसको तो ....................................
|
हकीकत ठीक उलट थी ,
बूंद गिरी उस बीज पर जो
लेटी थी मृत्यु-सय्या पर |
जी उठी वो बूंद की सोहबत में ,
किस्मत जिसके
संग था जुड़ा |
मौसम मुस्कुरा उठा बूंद की
कुर्बत पर
हर पत्ता खिलखिला के अब तो
बूंद को गिरा देता नीचें
फिर कहता जो चाहा वो मिला
नहीं
जो मिला वो सोचा नहीं
जहाँ को जरूरत थी इक पेड़ की ,
चलो एक बूंद ने जिंदा कर दिया |
जो बूंद ठहरी ............................
उसको तो गिरना ......................... |
कवियत्री मैथिली
( कवियत्री मैथिली रचित कविता “ एक
बूंद “ | मैथिली वर्तमान में वकालत की
पढ़ाई कर रही है | )
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