Sunday 8 August 2021

तपन के बाद जो सुबह होती

कुछ समय से मन के भीतर बहुत-सी आँधियाँ या यूँ कहूं तूफ़ान चल रहा | मन शब्दों संग खेलना चाह रहा ,आनंदित भी करना चाह रहा तो उन शब्दों की मौन व्यथा संग जीवन के कुछ अनसुलझे पहलुओं को समझाने का प्रयास भी कर रहा |बारिश की बूँद से वातावरण भी समझाने को प्रयासरत है कि ख़ुद को संचारित रखने का ज़रिया वो पर्यावरण है जो आपके साथ हर वक़्त चलते है | ख़ुद को समझना और ख़ुद पर प्रयोग कर दिशा दिखाना तब आसान है जब आप दर्द के आलम में भी चेहरे की हँसी को बरक़रार रखते है | तलाश हमेशा जारी रखनी चाहिए पर उसमें तत्परता की भी आवश्यकता है | बंद कमरे में अकेले रह देखिए , जीवन की सच्चाई पता चलेगी | खाली दिवार दर्पण का काम करेगा और ख़ुद की अच्छाइयों -बुराईओं से रु-बरु करवाएगा | दिशा की तलाश हर समय करें क्योंकि इंसान दिशा-विहीन तब होता जब वो ख़ुद को रेस में आगे समझता है | हमेशा ये सोचें की अगर आपने अच्छा किया तो कोई उससे अच्छा कर सकता या किया होगा | पता है इससे ये मालूमात होता है कि ख़ुद के भीतर ख़ुद को ख़ुद के लिए बनाना है, कि रेस में दूसरे को चित करने के लिए | चाय की चुस्की सभी ने ली होगी , जब हम होंठों से चाय की प्याली को लगाते है तो कभी कभी उसके तपन से जीभ जल जाती है | फिर भी  हम अक़्सर कहते है वाह चाय अच्छी थी मजा गया | कहने का मतलब ये है कि तपने के समय कष्ट तो होता है ,पर उस तपन के बाद जो सुबह होती है वो आनंदित और प्रफुल्लित कर जाती है | सपनों संग तब तक जीना छोड़े जब तक आँखों के सामने उसे तैरता पाए | जीवन की दिशा तब और सुंदर लगता है, जब इंसान मन से ख़ुद को ताना देता है , बस ध्यान रक्खें की ख़ुद को ताना ख़ुद से तुलना कर के दें  कि दूसरों संग कर के ||

नवीन आशा 


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