Saturday 9 May 2020

माँ

मातृ दिवस की शुभकामना संग आज प्रस्तुत है कवियत्री  " अकर्षिता सिंह " द्वारा रचित कविता 'माँ  ' | अकर्षिता ,वसंता कॉलेज ऑफ़ वीमेन राजघाट (वाराणसी ) से डिप्लोमा इन मास कम्युनिकेशन  की पढ़ाई कर रही है | 





                      1

ये जो तुम बात -बात में चिल्ला उठते हो ,
झल्ला उठते हो, परेशान हो उठते हो  
उसके बार-बार पूछे गये एक सवालों 
पर  
कभी सोचा भी है ?
कितनी रात की नींद गवाईं है उसने  
तुम्हें अपनी गोद में लेकर  
तुम्हारे सिर्फ एक दफ़ा चिल्लाने पर ,
रोने पर  ,उठ जाने पर  
क्या वो कभी झल्लाई थी तुम-पर  ?

                    2.
हर बार तुम्ही से मिलती हूँ ,
तुम्ही से झगड़ती हूँ  
तुम्ही से  उलझती  हूँ  
और  अक़्सर  तुम्ही से  
सूलझ जाती हूँ ||

                    3.
आज हम थोड़े  बेख़ौफ़ हुए है 
अपनी बातों  को बेबाकी  से कहने  के  लिए  |
हमने  अपनी शालीनता नहीं छोड़ा  
कुछ मर्यादाओं  को तोड़ा है  
कुछ घिसी -पिटी परम्पराओं से मुँह मोड़ा है 
क्योंकि माँ अक़्सर कहती थी ,
सहम के मत आगे बढ़ना  
ख़ुद राह को बना, उन राहों पर  
सूर्य के प्रकाश सा चमकना  ||







अकर्षिता सिंह  
डिप्लोमा इन मास कम्युनिकेशन  
वसंता कॉलेज ऑफ़ वीमेन  
राजघाट (वाराणसी )

2 comments:

  1. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति....

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  2. अच्छी रचना...लाजवाब

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