मातृ दिवस की शुभकामना संग आज प्रस्तुत है कवियत्री " अकर्षिता सिंह " द्वारा रचित कविता 'माँ ' | अकर्षिता ,वसंता कॉलेज ऑफ़ वीमेन राजघाट (वाराणसी ) से डिप्लोमा इन मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई कर रही है |
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ये जो तुम बात -बात में चिल्ला उठते हो ,
झल्ला उठते हो, परेशान हो उठते हो
उसके बार-बार पूछे गये एक सवालों
पर
कभी सोचा भी है ?
कितनी रात की नींद गवाईं है उसने
तुम्हें अपनी गोद में लेकर
तुम्हारे सिर्फ एक दफ़ा चिल्लाने पर ,
रोने पर ,उठ जाने पर
क्या वो कभी झल्लाई थी तुम-पर ?
2.
हर बार तुम्ही से मिलती हूँ ,
तुम्ही से झगड़ती हूँ
तुम्ही से उलझती हूँ
और अक़्सर तुम्ही से
सूलझ जाती हूँ ||
3.
आज हम थोड़े बेख़ौफ़ हुए है
अपनी बातों को बेबाकी से कहने के लिए |
हमने अपनी शालीनता नहीं छोड़ा
कुछ मर्यादाओं को तोड़ा है
कुछ घिसी -पिटी परम्पराओं से मुँह मोड़ा है
क्योंकि माँ अक़्सर कहती थी ,
सहम के मत आगे बढ़ना
ख़ुद राह को बना, उन राहों पर
सूर्य के प्रकाश सा चमकना ||
अकर्षिता सिंह
डिप्लोमा इन मास कम्युनिकेशन
वसंता कॉलेज ऑफ़ वीमेन
राजघाट (वाराणसी )
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteअच्छी रचना...लाजवाब
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